तस्स्वुर में मिलते हैं मेरे हाथ, बार-बार तेरे हाथों में
इक जहाँ की तरह लगते हैं, तेरे रुख़सार मेरे हाथों में

कुछ अधूरा-अधूरा था अब तक जो मेरे हाथों में
आकर हुआ है अब वो फ़िर, साकार तेरे हाथों में

No comments:

Post a Comment